छत्तीसगढ़ ने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं। एक “युवा राज्य” के रूप में अब यह समय आत्ममंथन का है — कि इन पच्चीस वर्षों में हमने क्या पाया और क्या खोया। प्राकृतिक संपदाओं, सांस्कृतिक धरोहरों और सरल जनता से समृद्ध यह प्रदेश राजनीतिक रूप से अब उस मुकाम पर है जहाँ जनता का विश्वास, सरकार की नीतियाँ और राजनीतिक दलों का आचरण — तीनों की गंभीर समीक्षा ज़रूरी हो गई है।

जनता की उम्मीदें और सियासत का यथार्थ

राज्य गठन के समय जो सपना बुना गया था — “गर्व, नवा छत्तीसगढ़” का — वह अभी अधूरा है। बेरोज़गारी, पलायन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत चुनौतियाँ अब भी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। सरकारें आईं, बदलीं, योजनाएँ बनीं, लेकिन जनता को उम्मीदों से ज़्यादा घोषणाएँ ही मिलीं।
राजनीतिक दल सत्ता की कुर्सी तक पहुँचने के लिए हर पाँच साल में जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं, पर सत्ता में आने के बाद वही वादे काग़ज़ों में सिमटकर रह जाते हैं।

25 वर्ष का युवा राज्य, पर राजनीतिक सोच अब भी पुरानी

छत्तीसगढ़ भले 25 वर्ष का हो गया हो, लेकिन इसकी राजनीति अब भी उसी परंपरागत सोच में बंधी है जहाँ विकास से ज़्यादा चर्चा दलगत समीकरणों और पद की राजनीति की होती है।
युवा राज्य को युवा नेतृत्व की आवश्यकता है — ऐसा नेतृत्व जो भीड़ नहीं, विचार लेकर चले; जो जनता की आवाज़ को सत्ता के गलियारे तक पहुँचाने का साहस रखे।

नए नेतृत्व और स्थानीय मुद्दों का उदय

पिछले कुछ वर्षों में ग्राम पंचायतों और नगरीय निकायों से उभर रहे जनप्रतिनिधियों ने यह दिखाया है कि स्थानीय स्तर पर जनता उन नेताओं को पसंद कर रही है जो उनके साथ खड़े रहते हैं। डॉक्टर, शिक्षक, किसान, सामाजिक कार्यकर्ता — अब राजनीति की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। यह “युवा छत्तीसगढ़” की सबसे सकारात्मक तस्वीर है।

आने वाले समय की राजनीति : जवाबदेही और पारदर्शिता

आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ की राजनीति को “वादों” से नहीं बल्कि “विकल्पों” से बदलना होगा। अब जनता चाहती है — पारदर्शी शासन, जवाबदेह प्रतिनिधि और स्थायी विकास।
25 वर्ष का यह युवा राज्य तभी परिपक्व कहलाएगा जब राजनीति का केंद्र व्यक्ति या पार्टी नहीं, बल्कि जनहित बनेगा।

छत्तीसगढ़ अब किशोर नहीं, युवा हो चुका है। उसे अब दिशा चाहिए, दृष्टि चाहिए और निर्णायक नेतृत्व चाहिए। आने वाले दशक में यदि राजनीति जनसरोकारों से जुड़ पाई, तो यह प्रदेश न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि लोकतांत्रिक चेतना के स्तर पर भी देश का आदर्श बन सकता है।

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