रायपुर – जनता की सेहत के नाम पर चलाई जा रही मोबाइल मेडिकल यूनिट (MMU) योजना अब गंभीर सवालों के घेरे में है।
छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों के लिए करोड़ों की लागत से खरीदी जा रही इन यूनिट्स में तकनीकी गड़बड़ियाँ, मानक उल्लंघन और अफसर-ठेकेदार की मिलीभगत के आरोप तेजी से उभर रहे हैं।

108 करोड़ की योजना में गहराया विवाद

स्वास्थ्य सेवाओं को गांव-गांव तक पहुँचाने के लिए प्रदेश सरकार ने हैदराबाद की धनुष नामक एजेंसी को दिया।
108 करोड़ रुपये की योजना के तहत 57 मोबाइल मेडिकल यूनिट्स तैयार की जानी थीं —
लेकिन अब जो तथ्य सामने आए हैं, उन्होंने पूरे प्रोजेक्ट की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

अनुबंध में स्पष्ट मानक थे — फिर भी घटाई लंबाई और कद!

सूत्रों के अनुसार अनुबंध में वाहनों की लंबाई, ऊँचाई और वजन स्पष्ट रूप से निर्धारित थे। वाहनों का वजन मात्र 4000 किलो पाया गया, जबकि टेंडर दस्तावेज़ों में कम से कम 6000 किलो का मानक तय था।
न सिर्फ वजन कम किया गया, बल्कि वाहन की लंबाई और ऊँचाई भी घटाई गई, नियमानुसार वाहन की लंबाई 17 से 22 फीट और ऊँचाई 6.5 फीट से कम नहीं होनी चाहिए (केबिन को छोड़कर कार्यशील स्थान के लिए)। लेकिन एजेंसी के द्वारा जिन वाहनों को उपयोग में लाया जाना है उनकी लंबाई 14 फिट और ऊँचाई 6 फिट है।जिससे अंदर लगाए गए मेडिकल उपकरणों की क्षमता और सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं।

इतना ही नहीं, वाहनों में केवल एक ही गेट दिया गया है — जबकि एंट्री और एग्जिट के लिए अलग-अलग गेट मानकों के अनुसार जरूरी था।
यह न सिर्फ सुरक्षा मानक का उल्लंघन है बल्कि आपातकाल में मरीजों की जान को खतरे में डाल सकता है।

बिना सैंपल पास किए पहुंचाई पूरी गाड़ियाँ!

मामला यहीं खत्म नहीं होता।
जानकारी के मुताबिक, कंपनी ने बिना सैंपल पास करवाए सभी वाहनों को साइट पर भेजने के लिए तैयार पार्किंग स्थल में खड़ी है— और अधिकारियों ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
अब सवाल यह है कि क्या यह सब ऊपरी स्तर की मिलीभगत के बिना संभव था?

भर्ती में भी पैसे मांगने के आरोप पहले से

याद रहे, इसी एजेंसी पर पहले भी स्टाफ भर्ती के दौरान पैसे मांगने के गंभीर आरोप लग चुके हैं।
कई उम्मीदवारों ने दावा किया था कि नौकरी देने के बदले उनसे रकम मांगी गई थी।
अब जब तकनीकी गड़बड़ियाँ भी सामने आ रही हैं, तो पूरे ठेके की साख पर सवाल उठना लाजमी है।

क्या जांच के नाम पर फिर होगा समझौता?

अब देखना यह होगा कि जिन वाहनों ने मानक पूरे नहीं किए,
क्या उन्हें बदलकर नई गाड़ियाँ लाई जाती हैं —
या फिर मिलीभगत कर सब कुछ रफा-दफा कर दिया जाएगा।

सूत्रों का कहना है कि विभाग ने सभी वाहनों की भौतिक सत्यापन के पश्चात ही उपयोग में लाने की बात कही है।
लेकिन सवाल यह भी है कि — “क्या जांच निष्पक्ष होगी या फिर सिस्टम के भीतर ही दबा दी जाएगी?”

जनता पूछ रही है — स्वास्थ्य योजना या ठेके की योजना?

जहाँ राज्य के हजारों ग्रामीण लोग इलाज के लिए इंतज़ार में हैं,
वहीं सरकार की यह करोड़ों की स्वास्थ्य योजना अब भ्रष्टाचार, नियम उल्लंघन और अफसरशाही की मिलीभगत का प्रतीक बनती जा रही है।

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