मरीन ड्राइव की चमक के पीछे उजड़ती ज़िंदगियों की कहानी



वो सुबह एक आम सुबह नहीं थी। बादल बरस रहे थे, लेकिन उनसे ज़्यादा तेज आँसू ज़मीन पर गिर रहे थे।
कारण?
रायगढ़ के मरीन ड्राइव प्रोजेक्ट के लिए 50 साल पुराने घरों को बुलडोजर से ढहा दिया गया।


यह सिर्फ घर नहीं थे… यादों की बस्तियां थीं

जिन घरों को गिराया गया, वे सिर्फ दीवारें नहीं थीं।
वे बुजुर्गों के बचपन से बुढ़ापे तक की यात्राएं थीं।
वो आंगन, जिनमें बच्चों ने चलना सीखा।
वो छतें, जिनके नीचे पीढ़ियों ने जिंदगी गुजारी।

और सब कुछ… एक दिन में मिट्टी में मिला दिया गया।


बरसात में तो चिड़िया का घर भी नहीं तोड़ा जाता…

यह कोई कहावत नहीं, भारतीय संस्कृति का भाव है।
पर रायगढ़ प्रशासन के लिए शायद यह भावनाएं अब “विकास में बाधा” बन चुकी थीं।
मरीन ड्राइव के लिए इंसानों के बसे-बसाए घर गिरा दिए गए — वो भी बरसात के मौसम में।


लोग गिड़गिड़ाते रहे, अफसर जेसीबी चलाते रहे

“साहब, ये घर हमारा सब कुछ है…”

“बच्चा गोद में है, कहाँ जाएँ?”

“हमारे पास दूसरा कोई ठिकाना नहीं…”

लेकिन प्रशासन के कानों तक ना आवाज़ पहुँची, ना संवेदना।


क्या यह मरीन ड्राइव विकास है… या विनाश की नींव?

सरकार कहती है —
“यह परियोजना शहर को सुंदर और पर्यटन योग्य बनाएगी।”

हम पूछते हैं —
क्या उजड़े हुए सपनों और बेघर लोगों की चीखों पर सौंदर्य खड़ा होता है?


बुजुर्ग खुले आसमान के नीचे, महिलाएं बेघर, बच्चे डरे हुए

जो महिलाएं उम्र भर चूल्हा संभालती रहीं,
आज खुद धूप-बारिश में पड़ी हैं।

जो बच्चे स्कूल से लौटते ही माँ की गोद में सोते थे,
आज उनके सिर पर छत नहीं है।

यह सिर्फ मकान नहीं टूटे,
एक पूरी पीढ़ी की अस्मिता मिटा दी गई।


राजनेता, अधिकारी और व्यवस्था: कहाँ है आपकी जवाबदेही?

कहां हैं जनप्रतिनिधि, जिनका काम जनता की आवाज़ बनना है?

कहां हैं अफसर, जिनकी संवेदनशीलता शपथ में शामिल होती है?

कहां हैं वे नेता, जो चुनाव से पहले “सबका साथ, सबका विकास” का वादा करते हैं?

क्या आज रायगढ़ की जनता को ये सब सवाल पूछने का भी अधिकार नहीं है?


यह रिपोर्ट नहीं… यह चीख है इंसानियत की

विकास जरूरी है,
लेकिन उसका तरीका भी इंसानियत के दायरे में होना चाहिए।
अगर विकास का मतलब सिर्फ रोड, पार्क और लाइट है,
तो ये “विकास” नहीं, कब्रगाह का सौंदर्यीकरण है।


कभी आप इस नगर की मरीन ड्राइव घूमने जाइए,
तो तस्वीरें मत लीजिए —
एक बार वहां उन उजड़ी दीवारों के पास खड़े होकर आहटें सुनिए।
वो बतायेंगी कि
“50 साल की जड़ें एक दिन में नहीं टूटतीं…
पर जब टूटती हैं, तो जिंदगी भी साथ ले जाती हैं।”

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