छत्तीसगढ़ के बेरोजगारों के साथ छलावा ,पीएम जन मन योजना में बाहरी कंपनियों की एंट्री, स्थानीय युवाओं के हाथ खाली

भले ही छत्तीसगढ़ सरकार छत्तीसगढ़ के युवाओं को रोजगार देने के लिए एक के बाद एक योजनाओं की घोषणा कर रही हो, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। कागजों पर बनने वाली योजनाएं जैसे ही धरातल पर उतरती हैं, इन पर बाहरी कंपनियों का कब्जा हो जाता है और छत्तीसगढ़िया युवाओं का सपना धरे का धरा रह जाता है।

ताज़ा उदाहरण पीएम जन मन योजना का है। इस योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में 57 मोबाइल मेडिकल यूनिट (MMU) का संचालन होना है। योजना की मंशा साफ थी—छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना और साथ ही राज्य के युवाओं को रोजगार का अवसर देना। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस बड़े प्रोजेक्ट का संचालन छत्तीसगढ़ की किसी कंपनी को न देकर हैदराबाद की एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया है।

बाहरी कंपनी का दबदबा, छत्तीसगढ़ियों के हिस्से में सिर्फ धांधली

जब प्रबंधन की जिम्मेदारी बाहर की कंपनी को दी जाती है तो स्वाभाविक है कि वह अपने राज्यों के लोगों को प्राथमिकता देंगे। यही हो रहा है छत्तीसगढ़ में। टॉप लेवल के मैनेजमेंट पदों पर बाहरी राज्यों के लोग बैठाए गए हैं और छत्तीसगढ़ के लोगों को केवल ग्राउंड स्टाफ के पदों तक सीमित कर दिया गया है।

सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और लेन-देन की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं। कई अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया है कि भर्ती के दौरान उनसे मोटी रकम मांगी गई। ड्राइवर और पैरामेडिकल स्टाफ जैसे पदों पर भी उम्मीदवारों से 50-50 हजार रुपये तक की मांग की गई। जिन उम्मीदवारों ने पैसे दिए उनकी भर्ती हो गई, और जिन्होंने पैसे नहीं दिए, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

छत्तीसगढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़

योजना का मकसद था छत्तीसगढ़ की जनता को स्वास्थ्य सुविधा और युवाओं को रोजगार, लेकिन हकीकत यह है कि यह योजना अब बाहरी कंपनियों और उनके लोगों के लिए कमाई का जरिया बन गई है। छत्तीसगढ़ के युवा आज भी बेरोजगार की कतार में खड़े हैं, जबकि उनकी आंखों के सामने उनका अधिकार छीना जा रहा है।

जिम्मेदारों की चुप्पी और कंपनियों की मनमानी

सबसे बड़ा सवाल है कि जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि चुप क्यों हैं?
क्या उन्होंने इस योजना की टेंडर प्रक्रिया में यह शर्त नहीं रखी कि प्राथमिकता छत्तीसगढ़िया युवाओं को दी जाएगी? जब छत्तीसगढ़ में पहले से कई सक्षम कंपनियां मौजूद हैं, तो फिर बाहर की कंपनी को क्यों मौका दिया गया?

आज जरूरत इस बात की है कि इस तरह की योजनाओं में छत्तीसगढ़ के युवाओं को हर स्तर पर—चाहे मैनेजमेंट हो या ग्राउंड स्टाफ—प्राथमिकता दी जाए। साथ ही, भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए स्वतंत्र जांच एजेंसी की निगरानी में भर्ती कराई जाए ताकि किसी भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय न हो।

छत्तीसगढ़ सरकार को चाहिए कि वह अपनी नीतियों पर गंभीरता से पुनर्विचार करे। अगर योजनाएं सिर्फ कागजों पर छत्तीसगढ़ियों के लिए और जमीन पर बाहरी कंपनियों के लिए कमाई का जरिया बनी रहेंगी, तो यह सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ के भविष्य के साथ धोखा होगा।

सवाल यही है कि छत्तीसगढ़ की योजनाओं पर पहला हक छत्तीसगढ़ियों का क्यों नहीं?

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