जांजगीर चाम्पा – “जब सैंया भाई कोतवाल तो काहे का डर” यह कहावत उन स्थितियों पर पूरी तरह फिट बैठती है, जहां कोई व्यक्ति जिम्मेदार पद पर होने के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करता है क्योंकि उसे उच्चाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। जांजगीर-चाम्पा जिले में मोबाइल मेडिकल यूनिट के एरिया प्रोजेक्ट मैनेजर की स्थिति ऐसी ही है।

यह एरिया प्रोजेक्ट मैनेजर, जो मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना के तहत कार्यरत है, अपनी मनमानी के लिए बदनाम हो गया है। न केवल वह कार्यस्थल से नियमित रूप से अनुपस्थित रहते है, बल्कि उसे मिले जिम्मेदारियों का भी सही ढंग से पालन नहीं करते है। कैंप में समय पर दवाइयां न पहुंचाना और मरीजों के साथ दुर्व्यवहार जैसी गंभीर शिकायतें सामने आ रही हैं। पूर्व में एरिया प्रोजेक्ट मैनेजर अमित गौराहा व रोहित सिंह के खिलाफ कई शिकायतें आई लेकिन इन तमाम शिकायतों के बावजूद कोई कार्यवाही न होना बेहद चौंकाने वाला है। कारण साफ है—उसे जिले के नोडल अधिकारी और SUDA के अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है।

यहां स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि योजना के कार्यान्वयन पर इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है। ऐसे अधिकारियों की अनदेखी और संरक्षण के कारण आम जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का नुकसान हो रहा है।

और सबसे बड़ा विडंबना यह है कि ये एरिया प्रोजेक्ट मैनेजर केवल निष्ठा की सेल्फी के जरिए उपस्थिति दर्ज करके हर महीने 30 हजार रुपये से अधिक का वेतन पा रहा है, जबकि उसकी शैक्षणिक योग्यता स्वास्थ्य और प्रबंधन से कोसों दूर है। प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से की गई यह भर्ती एक गंभीर मुद्दा है, जो बताता है कि किस प्रकार जिम्मेदार पदों पर अयोग्य व्यक्तियों को रखा गया है।

इस पूरी स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि “जब सैंया भाई कोतवाल तो काहे का डर” कहावत यहां पर सही मायने में लागू होती है। जब उच्च पदों पर बैठे लोग खुद ही गलत कामों को संरक्षण दे रहे हों, तो सही और न्यायसंगत कार्यवाही की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Have Missed
Back